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परागण – पुंकेसर के परागकोष से परागकणों का उसी पुष्प के वर्तिकाग्र या किसी दूसरे पौधे के पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुंचने की क्रिया परागकण कहलाती है।
परागण किसे कहते हैं यह कितने प्रकार के होते हैं?
परागण – पुंकेसर के परागकोष से परागकणों का उसी पुष्प के वर्तिकाग्र या किसी दूसरे पौधे के पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुंचने की क्रिया को परागकण कहते है।
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पारागणों के प्रकार – परागण दो प्रकार के होते हैं।
- 1. स्वपरागण
- 2. परपरागण
1.स्वपरागण (Self Pallination) – जब परागकोष से परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर गिरते हैं तो उसे स्वपरागकण कहते हैं। इस क्रिया के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है। और यह क्रिया केवल द्विलिंगी पुष्पों में पाई जाती है। इस क्रिया के पुष्प रंगहीन एवं गंधहीन होते हैं।
2. परपरागण (Cross Pallination) – जब परागकोष से परागकण किसी दूसरे पौधे के पुष्प के वर्तिकाग्र पर गिरते हैं तो उसे परपरागकण कहते हैं। इस क्रिया के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है। और यह क्रिया एकलिंगी व द्विलिंगी दोनों प्रकार के पुष्पों में पाई जाती है। और इस क्रिया के पुष्प रंगहीन व सुगंधित होते हैं।
स्वपरागण और परपरागण में क्या अंतर है?
स्वपरागण और परपरागण में अंतर –
S.N | स्वपरागण | परपरागण |
1. | इस क्रिया में पराकोष से परागकण उसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर गिरते हैं। | इस क्रिया में परागकोष से परागकण किसी दूसरे पौधे के पुष्प के वर्तिकाग्र पर गिरते हैं। |
2. | इस क्रिया के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है। | इस क्रिया के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है। |
3. | यह क्रिया केवल द्विलिंगी पुष्प में पाई जाती है। | यह क्रिया एकलिंगी व द्विलिंगी दोनों प्रकार के पुष्पों में पाई जाती है। |
4. | इस क्रिया के पुष्प रंगहीन एवं गंधहीन होते हैं। | इस क्रिया के पुष्प रंगीन और सुगंधित होते हैं। |
5. | यह क्रिया सुलभ एवं आसान है। | यह क्रिया दुर्लभ एवं कठिन है। |
6. | इस क्रिया के लिए कम परागकणों की आवश्यकता होती है। | इस क्रिया के लिए अधिक परागकणों की आवश्यकता होती है। |
स्वपरागण के लाभ व हानियां बताइए?
स्वपरागण के लाभ –
- इस क्रिया के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है।
- इस क्रिया के लिए कम परागकणों की आवश्यकता होती है।
- इस क्रिया के लिए पुष्पा क रंगीन होना आवश्यक नहीं है।
- यह क्रिया सुलभ एवं आसान है।
- इस क्रिया में परागकणों की बर्बादी नहीं होती है।
स्वपरागण की हानियां –
- इस क्रिया द्वारा उत्पन्न होने वाली संताने पीढ़ी दर पीढ़ी कमजोर होती चली जाती हैं।
- इस क्रिया के द्वारा नई किस्मों का विकास नहीं किया जा सकता है।
- इस क्रिया द्वारा पौधे में नए लक्षण विकसित नहीं किए जा सकते हैं।
- इस क्रिया द्वारा उत्पन्न होने वाले पौधों की रोग प्रतिरोधक क्षमता घटती चली जाती है।
- इस क्रिया के लिए पुष्पों का द्विलिंगी होना आवश्यक है।
परपरागण के लाभ तथा हानियां बताइए?
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- परागकण किसे कहते हैं?
परपरागण के लाभ –
- इस क्रिया द्वारा नई किस्मों का विकास किया जा सकता है।
- इस क्रिया द्वारा उत्पन्न होने वाली संताने स्वस्थ होती हैं।
- इस क्रिया द्वारा उत्पन्न होने वाले पौधे की रोग प्रतिरोधक क्षमता अधिक होती है।
- इस क्रिया के लिए पुष्पों का द्विलिंगी होना आवश्यक नहीं है।
- इस क्रिया द्वारा उत्पन्न होने वाली संतति जीवन संघर्ष में अधिक सफल होती है।
परपरागण की हानियां –
- इस क्रिया के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है।
- इस क्रिया द्वारा पौधे की शुद्धता नष्ट हो जाती है।
- इस क्रिया में परागकणों की बर्बादी होती है।
- यह क्रिया दुर्लभ एवं कठिन है।
- इस क्रिया के लिए अधिक परागकणों की आवश्यकता होती है।
परागण (Pallination) और निषेचन (Fertilization) में क्या अंतर है?
परागण व निषेचन में अंतर –
S.N | परागण (Pallination) | निषेचन (Fertilization) |
1. | इस क्रिया में परागकोष से परागकण वर्तिकाग्र घर पर गिरते हैं। | इस क्रिया में नर युग्मक एवं मादा युग्मक आपस में मिलते हैं। |
2. | यह क्रिया निषेचन के पहले होती है। | यह क्रिया परागण के बाद होती है। |
3. | इस क्रिया के बाद पुष्प में कोई आकारिकी परिवर्तन नहीं होता है। | इस क्रिया के बाद बीजांड से बीज का तथा अंडाशय से फल का निर्माण होता है। |
4. | इस क्रिया के अंत में दो नर युग्मक बनते हैं। | इस क्रिया के अंत में द्विगुणित जागोट बनता है। |
5. | इस क्रिया के लिए माध्यम की आवश्यकता होती है। | इस क्रिया के लिए माध्यम की आवश्यकता नहीं होती है। |